दिल्ली अग्निकांड: आग, धुंआ, झुलसे जिस्म और मौत के सवाल
दिल्ली के रानी झांसी रोड स्थित अनाज मंडी की उस इमारत में जब आग लगी, भीतर सौ से ज़्यादा लोग सो रहे थे.
रविवार सुबह तो हुई लेकिन तब तक ज़िंदगियां राख हो चुकी थीं. दिन चढ़ने के साथ-साथ लाशों की गिनती बढ़ती गई. और देखते-देखते उस तंग गली का नज़ारा बदल गया.
लोगों को ज़िंदा निकालने की कवायद शुरू हुई. पर अंदर कुछ ज़िंदा लोग लाश बन चुके थे. लाशों की कोई पहचान नहीं थी. उन्हें कोई जानता नहीं था. उनकी सिर्फ़ यही पहचान थी कि वो इस फैक्ट्री में काम करते थे. शायद रहते भी यहीं थे.
वो फैक्ट्री जहां बच्चों के खिलौने और बस्ते बनते थे.
घटनास्थल पर दमकल की गाड़ियां, पुलिस और एनडीआरएफ़ के जवान तैनात थे. मीडिया भी थी. दर्जनों कैमरे थे लेकिन वहां वो लोग मौजूद नहीं थे जिनके रिश्तेदारों की मौत इस हादसे में हुई.
इस फैक्ट्री में 17 साल से लेकर 30 साल तक की उम्र के लोग काम क
हालांकि जैन सिंगापुर का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि ये इतनी भी बड़ी समस्या नहीं है जिसका हल नहीं निकाला जा सके. वो मानते हैं कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई जाए तो क्या नहीं संभव है लेकिन यह ज़रूरी है कि सरकारें ये समझें कि अनदेखी करना कितना ख़तरनाक हो सकता है.
वो कहते हैं कि हमारे यहां अक्सर जब भी इस तरह के हादसे होते हैं तो एक जांच समिति बना दी जाती है, कुछ लोगों को गिरफ़्तार तो कुछ को सस्पेंड करके ये माना जाता है कि ज़िम्मेदारी पूरी. लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. अगर कोई यह कह रहा है कि यह हादसा है तो बिल्कुल नहीं, ये कोई हादसा नहीं है ये पूरी तरह हत्या का मामला है. प्रशासन की आंखें मूंदने का परिणाम है, जो इतने लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है.
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लेकिन यह पहला मौक़ा नहीं है जब देश की राजधानी में इंसानी जान जलकर ख़ाक़ हुई है.
उपहार कांड हो या इसी साल करोलबाग़ के एक होटल में लगी आग. बवाना औद्योगिक क्षेत्र में हुआ हादसा हो या फिर मालवीय नगर केमिकल फैक्ट्री में लगी आग.
सभी घटनाएं एक-दूसरे से मिलती-जुलती हैं. तंग गलियां, लटकते तार, बंद कोठरियों में चलती फैक्ट्री.
चूक कहां. ज़िम्मेदार कौन ?
डीडीए के पूर्व प्लानिंग कमिश्नर ए के जैन से हमने इस बारे में बात की.
डीडीए के पूर्व प्लानिंग कमिश्नर ए के जैन का मानना है कि इस अग्निकांड के लिए तीन लोग/संस्था ज़िम्मेदार हैं. पहला तो वो शख़्स जिसकी ये फैक्ट्री थी क्योंकि उसने बिना किसी एनओसी के वहां फैक्ट्री खोल रखी थी. बिना लाइसेंस के आख़िर उसने फैक्ट्री खोलने की हिम्मत कैसे की.
- नगर निगम ?
हालांकि उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया है. दूसरी ज़िम्मेदारी दिल्ली नगर निगम की है. आख़िर कैसे ये बिल्डिंग उनकी आंखों से बच गई. क्यों उन्होंने इसकी पड़ताल नहीं की और तीसरी ग़लती है फ़ायर डिपार्टमेंट की.
- फ़ायर डिपार्टमेंट?
फ़ायर डिपार्टमेंट के नियमों के अनुसार अगर कोई इमारत 11 मीटर से ऊंची है तो उसे एनओसी लेना होगा और अगर कोई बिल्डिंग पंद्रह मीटर से ऊंची है तो उसे फ़ायर का एनओ
जैन कहते हैं कि जहां तक बात है इमारत बनने के दौरान के सुरक्षा नियमों के पालन की तो ऐसा माना जा रहा है कि यह इमारत पुरानी रही होगी.
वो कहते हैं कि जब दिल्ली का मास्टर प्लान बना था तो उसी वक़्त यह तय कर लिया गया था कि स्ट्रक्चरल सेफ्टी और फ़ायर सेफ़्टी के सर्टिफिकेट हर कोई पेश करेगा ताकि उनकी इमारत रेगुलराइज़ हो सके लेकिन ज़्यादातर लोगों ने इसमें धांधली की. और जितने भी इससे जुड़े विभाग थे उन्होंने भी इसे अनदेखा किया.
जैन इन सारे मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप से भी इनक़ार नहीं करते हैं.
वो कहते हैं कि प्लानिंग के कुछ अपने कायदे हैं लेकिन उनका
ए के जैन उपहार सिनेमा और करोल बाग़ में हुए हादसों को भी इसी अनदेखी से जोड़कर देखते हैं.
लेकिन क्या दिल्ली में अभी और भी ऐसी जगहें हैं जहां यह ख़तरा मंडरा रहा है?
इस सवाल के जवाब में जैन कहते हैं कि जो भी इलाके अनप्लांड यानी बिना किसी तय योजना के बने हैं, वहां ख़तरा हो सकता है.
अनप्लांड इलाक़े वो हैं जिनका निर्माण आमतौर पर अवैध तरीक़े से रातोंरात कर लिया जाता है. बिना किसी योजना के, बिना किसी तय स्ट्रक्चर के. कोई नक्शा नहीं होता और ये इमारतें खड़ी कर दी जाती हैं. ऐसे में ये ख़तरा तो है ही.
भी पालन नहीं हुआ. मसलन 6 मीटर चौड़ी सड़क होनी चाहिए. पार्किंग की व्यवस्था होनी चाहिए जो गलियों से बाहर हो ताकि अगर इस तरह की कोई अप्रिय घटना होती है तो सहायता जल्दी पहुंच सके और बीच सड़क खड़ी गाड़ियों की वजह से जाम ना लगे.
इसके अलावा वहां फ़ायर हाइड्रेंट की व्यवस्था होनी चाहिए. लेकिन जहां यह हादसा हुआ वहां इनमें से कोई सुविधा नहीं थी. ये सीधे तौर पर अनदेखी किये जाने का परिणाम है. सबकुछ सामने था,सबको ये भी पता था कि ग़लत हो रहा है लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया.
सी लेना होगा. और अगर उस इमारत के लिए फ़ायर एनओसी नहीं लिया गया है तो डिपार्टमेंट ख़ुद ही उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करते हुए इमारत को सील कर सकता था.
ते थे. जो बच गए हैं दिल्ली के अस्पताल में भर्ती हैं.
फैक्ट्री के मालिक रेहान और मैनेजर को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है और मामले की जांच चल रही है.
उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (लापरवाही से मौत या ग़ैरइरादतन हत्या) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
इस इमारत में सो रहे सौ लोगों में से 43 लोग अब तक म
घटना सुबह क़रीब पांच बजे की है. सबकुछ रोज़ जैसा था लेकिन वो इमारत आज रोज़ से अलग धुंआ फेंक रही थी. काला धुंआ.
वहां आग की लपटें उठ रही थीं. अंदर से चीखने-चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी. कुछ लोग बदहवास से बाहर भाग रहे थे.
र चुके हैं. 60 से ज़्यादा अस्पताल में भर्ती हैं.
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